न्यूज डेस्क, नेशनलव्हील्स
पप्रस्तावित पूर्वांचल की आबादी होगी 8 करोड़
बस्ती,गोरखपुर,वाराणसी,आजमगढ़ ,फैजाबाद ,
देवीपाटन, मिर्जापुर, इलाहाबाद होंगे आठ मंडल
2012 के विधानसभा चुनाव के एनवक्त मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने 11 सितंबर 2011 को विधानसभा से पूर्वांचल का एक प्रस्ताव पारित कर दिल्ली तक पहुंचा दिया था
उत्तर प्रदेश की आबादी करीब 22 करोड़ है , इतनी ज्यादा जनसंख्या वाले सूबे का विभाजन बनता है
पूर्वांचल भले ही किसी चुनाव में मतदाताओं को आकर्षित करने का चुनावी मुद्दा न बनता हो लेकिन अब इस हिस्से को अलग कर यूपी का तीसरा बंटवारा वक्त की जरूरत है। आजादी के बाद से अबतक की सभी सरकारों में पूर्वांचल का दबदबा रहने के बावजूद इस हिस्से की उपेक्षा समझ से परे है। यहां उद्योग , पर्यटन,कृषि आदि की अनंत संभावनाएं हैं लेकिन इसका लाभ पूर्वांचल को बिना अलग राज्य के मिल पाना संभव नहीं जान पड़ता। मौजूदा समय में एक बार फिर यूपी के तीन भाग में बंटवारे की सुगबुगाहट से पूर्वांचल राज्य की संभावना को बल मिला है।
आबादी कई राज्यों से ज्यादा , विकास शून्य
अभी भी पूर्वांचल की आबादी कई प्रदेशों की आबादी से भी अधिक है लेकिन विकास के मामले में शून्य है। यहां की चीनी मिलें एक एक कर बंद होती गईं और गन्ना किसान बदहाल होता गया। पर्यटक की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण स्थल भी राजनीति का शिकार होकर रह गए। भगवान बुद्ध की महाप्रयाण स्थली कुशीनगर, क्रीड़ा स्थली कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर, देवदह जैसे केवल बुद्ध से जुड़े स्थानों को ही विकसित कर इसे पर्यटकीय स्थल का रूप दिया जाय तो विदेशी मुद्रा आय का बड़ा जरिया बन सकता है। इसके अलावा गोरखपुर का रामगढ़ताल परियोजना जिसे स्व. वीरबहादुर सिंह ने शुरू किया था उसे भी विकसित कर गोरखपुर के सौंदर्यीकरण का खूबसूरत हिस्सा बनाया जा सकता है। पूर्वांचल राज्य का दर्जा देकर यूपी के इस हिस्से को तराशकर विकास के नक्शे पर इसेे चमकता हुआ हस्ताक्षर दर्शाया जा सकता है।
बाबा साहेब ने भी कही थी विभाजन की बात
मालूम हो कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने उप्र के विभाजन की बात तब कही थी जब इस प्रदेश की आवादी 6 करोड़ ही थी। आज आबदी 22 करोड़ है , तो कम से कम इसे तीन प्रदेशों में बंटना चाहिए। उप्र के बंटवारे की आवाज पूर्व में कई बार उठी है। स्व. कल्पनाथ राय ने तो इसे लेकर कई बार बड़ा आंदेालन तक किया था। उन्होंने मऊ सहित पूर्वांचल के कई जिलों में पदयात्राएं की थी। भासपा के ओमप्रकाश राजभर ने तो इसे आगे बढ़ाते हुए कहा था कि उनके राजनीति का मकसद ही पूर्वांचल है। निसंदेह इसके लिए वे पूर्वांचल के जिलों में बिगुल बजाते रहे हैं। जबकि पूर्वांचल कार्ड को बसपा प्रमुख मायावती ने भी खेला था। 2012 के विधानसभा चुनाव के एनवक्त मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने 11 सितंबर 2011 को विधानसभा से एक प्रस्ताव पारित कर दिल्ली तक पहुंचा दिया था।
पं.राम शंकर मिश्र ने भी उठाई थी पूर्वांचल की मांग
पूर्वांचल राज्य की मांग नई नहीं है। बहुत पहले सिद्धार्थ नगर जिले के निवासी तथा भगवान बुद्ध के क्रीड़ा स्थली कपिलवस्तु की खोज के नायक पं.राम शंकर मिश्र ने बुद्ध से जुड़े पूर्वांचल के 24 जिलों को मिलाकर शाक्य प्रदेश की मांग बुलंद की थी। उसके बाद ही पूर्वांचल राज्य की मांग अलग अलग संगठनों के माध्यम से उठनी शुरू हुई थी लेकिन इसे वैसी धार नहीं मिली जैसी उत्तराखंड अथवा तेलांगना के लिए मिली। हां , यह जरूर कहा जा सकता है कि 1991 में केंद्र सरकार के अलग से पूर्वांचल विकास निधि की शुरूआत करने के पीछे पूर्वांचल राज्य का बढ़ता दबाव ही था। प्रदेश की आबादी जब 18 करोड़ थी तब लंबे संघर्ष के बाद सन 2000 में उत्तराखंड के रूप में 27वें राज्य का गठन हुआ। अब सूबे की आबादी करीब 22 करोड़ है ऐसे में कम से कम पूर्वांचल राज्य के रूप में एक और प्रदेश का गठन वक्त की जरूरत है।
नौ पीएम देने वाला विकास में अति पिछड़ा
विकास की दृष्टि से देखें तो देश को नौ प्रधानमंत्री देने वाले इस राज्य का विकास राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे है। यह हाल आजादी के सातवें दशक में है। आजादी के समय राष्ट्रीय आय में उप्र का योगदान कुल आय का पांचवा भाग था जो घटते घटते उसका आधा हो गया। उप्र के प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आय में अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। उत्तराखंड में प्रति व्यक्ति आय 9639 रू.प्रति माह है जो राष्ट्रीय आय से भी ज्यादा है। अनेक आर्थिक मानदंडों पर राष्ट्रीय औसत से यह राज्य बहुत पीेछे है। प्रदेश में 29 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। बुनियादी सुविधाएं भी उतनी नहीं है जितनी अन्य राज्यों में है। केवल बिजली की ही बात करें तो अन्य प्रदेश जहां शत प्रतिशत विद्युतीकरण की ओर अग्रसर है वहीं इस प्रदेश में अभी भी 20 प्रतिशत गांव बिजली को तरस रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी उप्र राष्ट्रीय औसत से 4.32 प्रतिशत पीछे है। हम अगर पूर्वांचल की आबादी की बात करें तो असम,गुजरात,हरियाणा,जम्मू-कश्मीर,कर्नाटक केरल सहित कई प्रदेश ऐसे हैं जिनकी आबादी पूर्वांचल से कम है। इस अविकसित क्षेत्र की आबादी करीब सवा नौ करोड़ है और यहां प्रति वर्ग किमी 7.55 व्यक्ति का भार है। औद्योगीकरण के अभाव में इस क्षेत्र का 75 प्रतिशत आबादी खेतिहर मजदूर के रूप में जीवनयापन करने को मजबूर है। सिंचाई सुविधा का खराब हाल होने के नाते लोगों को अपनी खेती के लिए बादलों की ओर निहारने को विवश रहना पड़ता है। यहां की कुल क्षेत्रफल की 55.65 प्रतिशत भूमि ही सिंचित क्षेत्रफल के दायरे में आती है। पूर्वांचल की भूमि का एक बड़ा भाग उसर होने के कारण भी कृषि उत्पादन पर असर पड़ता है। पूर्वांचल की 41 चीनी मिलों में से करीब करीब सभी बंद हैं या बंदी के कगार पर हैं , इसलिए बेरोजगारी भी बढ़ी है। अंदरखाने से खबर मिल रही है कि केंद्र सरकार यूपी के बंटवारे पर गंभीरता से विचार कर रही है। ऐसे में पूर्वांचल के 28 जिलों को मिलाकर अलग राज्य की संभावना एक बार फिर जगी है।
जब नेहरू जी रो पड़े
1962 में गाजीपुर से सांसद विश्वनाथ प्रसाद गहमरी ने लोकसभा में पूर्वांचल के लोगों की समस्या और गरीबी को उठाया तो प्रधानमंत्री नेहरू को रुलाई आ गई। इसी के बाद इस मुद्दे पर बात शुरू हुई। इसमें अलग राज्य के लिए कारण गिनाए जाते थे बिजली, सड़क, रोजगार व गरीबी के कारण पलायन आदि।
शामिल प्रमुख जिले
प्रयागराज , कौशांबी , मऊ, बलिया, आजमगढ़, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, गाजीपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर, संतकबीर नगर, प्रतापगढ़, सोनभद्र, मीरजापुर, वाराणसी, चंदौली, फैजाबाद (अयोध्या), अंबेडकर नगर, गोरखपुर और भदोही।
फाइलों में दबी पटेल आयोग की रिपोर्ट
भारतीय जनता पार्टी छोटे राज्य की समर्थक तो रही है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस पर चर्चा नहीं कर रही है। वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में पूर्वांचल की एक सभा में विश्वनाथ प्रसाद गहमरी का उल्लेख करते हुए कहा था कि पटेल आयोग की रिपोर्ट लागू की जाएगी। उल्लेखनीय है कि नेहरू के सामने गहमरी द्वारा मुद्दा उठाने के बाद पटेल आयोग का गठन किया गया था, लेकिन उसकी संस्तुतियां फाइलों में आज भी दबी हैं।
पूर्व पीएम चंद्रशेखर ने भी मुद्दा उठाया था
कल्पनाथ राय व पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी इस मुद्दे को उठाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह व एचडी देवगौड़ा के समर्थन के बाद मांग को कुछ बल मिला था। लालू यादव ने सारनाथ में पूर्वांचल राज्य का मुख्यालय बनारस में बनाने की बात कही थी, लेकिन गोरखपुर में भी मुख्यालय बनाने की बात कहकर बयान की गंभीरता खत्म कर दी।
औद्योगिक स्वर्ग है पूर्वांचल
सोनभद्र की पहाड़ियों में चूना पत्थर तथा कोयला मिलने व देश की सबसे बड़ी सीमेन्ट फैक्ट्रियां, बिजली घर (थर्मल तथा हाइड्रो), एलुमिनियम एवं रासायनिक इकाइयां स्थित हैं। साथ ही कई सारी सहायक इकाइयां एवं असंगठित उत्पादन केन्द्र, विशेष रूप से स्टोन क्रशर इकाइयां, भी स्थापित हुई हैं। जिससे इस इलाके को औद्योगिक स्वर्ग कहा जाता है। इसके साथ ही भहोही का कालीन कारोबार, बनारस की साडियां, मऊ, आजमगढ़ में बुनकरों की कारीगरी, जौनपुर का इत्र, मिर्जापुर का पीतल कारोबार आदि इस इलाके को औद्योगिक रूप से संपन्न बनाते हैं। इलाहाबाद औऱ कौशांबी का अमरूद , कुशीनगर महात्मा बुद्ध को लेकर प्रसिद्ध है। पूर्वांचल में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। कुशीनगर , बनारस , मिर्जापुर , इलाहाबाद , कौशांबी , अयोध्या , श्रृंगवेरपुर आदि दर्शनीय स्थल हैं।
उत्तर प्रदेश, लेखक – यशोदा श्रीवास्तव
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