प्रयागराज : उत्तर मध्य रेलवे के कुछ अफसर फैसले के वक्त आंखें और दिमाग बंद कर लेते हैं। भले ही उनकी ऐसी कारगुजारियों से किसी कर्मचारी का भविष्य अंधकार में डूब जाए। उसका आश्रित परिवार सड़क पर आ जाए। कुछ ऐसा ही वाकया प्रयागराज मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय के सीनियर डीओएम कोआर्डिनेशन की कलम ने किया। अफसर ने रेलवे डाक्टरों की “गलती” को “डॉक्टरी” कर ऐसा “स्टैबलिश” किया कि कानपुर सेंट्रल स्टेशन के डिप्टी एसएस रईस अहमद जाफरी को नौकरी से हाथ धोना पड़ गया। सीनियर डीओएम के पत्र को ही आधार मानकर कार्मिक विभाग ने जाफरी को रेलवे की सेवा से बाहर करने का फरमान निकाल दिया।
कानपुर सेंट्रल के डिप्टी एसएस रईस अहमद जाफरी को ‘अनफिट फॉर ऑल कैटेगरी’ मानते हुए सहायक कार्मिक अधिकारी नितिन सिंह ने तत्काल प्रभाव से सेवा मुक्त कर दिया।
प्रकरण की पड़ताल में सीनियर डीओएम कोऑर्डिनेशन डा. शिवम शर्मा का वह पत्र भी हाथ लगा जिसे उन्होंने 4 नवंबर 2022 को वरिष्ठ कार्मिक अधिकारी को लिखा था। इसमें उन्होंने तीन पत्रों का हवाला देते हुए जानबूझकर कलर विजन के लिए बहाना बनाने Established (स्थापित) लिख दिया। दरअसल, आईआरएमएम के उल्लेखित 512(2) सब नोट (¡¡) में Malingering (बहाना) में स्थापित का संदेहास्पद और स्थापित दो शब्द हैं। दोनों के मानक भी अलग-अलग हैं। रेलवे के जानकार बताते हैं कि संदेहास्पद में कर्मचारी को ऐसे पद पर नौकरी मिल सकती है गैर आकर्षक पद हों। जबकि स्थापित शब्द का इस्तेमाल होते ही कर्मचारी को सेवा से बाहर कर दिया जाता है। क्या ऐसे गंभीर पद पर बैठे अफसर को इन शब्दों के प्रभाव और परिणाम नहीं पता होंगे ? ऐसा संभव नहीं है।
यह भी उल्लेखनीय है कि 1 सितंबर 2022 को कार्मिक विभाग ने प्रमुख मुख्य चिकित्सा निदेशक उत्तर मध्य रेलवे प्रयागराज और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक कानपुर को पत्र लिखकर यह साफतौर पर बताया था कि रईस अहमद जाफरी के केस में चिकित्सा बोर्ड ने इनकी वर्तमान मेडिकल कैटिगरी के फिटनेस का उल्लेख नहीं किया है। इसके अतिरिक्त आईआरएमएम में उल्लिखित 512 (2) सब नोट (¡¡) में Malingering की व्याख्या की गई है, जिसमें प्रथमतया, सस्पेक्टेड आरोपित कर्मचारी को अंकन किया गया है। इसके अंतर्गत गैर आकर्षक पद पर कर्मचारी को रीडिप्लॉय यानि पुनर्नियुक्त किया जाता है। दूसरा, इस्टैबलिश्ड शब्द का अंकन है। इसके अंतर्गत आरोपित कर्मचारी को अनफिट फॉर ऑल कैटेगरी मानते हुए रेल सेवा से निकाल दिए जाने का प्रावधान है। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक कानपुर के पत्र में सस्पेक्टेड या इस्टैबलिश्ड शब्द का अंकन भी नहीं है।
सूत्र बताते हैं कि मुख्य चिकित्सा अधीक्षक कानपुर ने रईस अहमद जाफरी को रेल सेवा से बाहर कर देने का आदेश जारी होने की तिथि तक मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय प्रयागराज के पत्र का जवाब नहीं दिया है। साफ है कि रेलवे के चिकित्सा विभाग ने यह रिपोर्ट तो दे दी कि रईस अहमद जाफरी कलर विजन के लिए जानबूझकर बहाना बना रहे हैं लेकिन वह यह प्रमाणित नहीं कर सके कि जाफरी की यह समस्या संदेहास्पद है या स्थापित।
चिकित्सकों से इसकी रिपोर्ट आए बगैर ही सीनियर डीओएम कोऑर्डिनेशन डाक्टर शिवम शर्मा ने जाफरी के मामले में कार्मिक विभाग को पत्र लिखकर समस्या को “स्थापित” बता डाला।
एक बार यदि यह मान भी लिया जाए कि जाफरी के कलर विजन की समस्या “स्थापित” है तो अब तक तीन पीएमई में वह ए-2 चिकित्सा परीक्षण तीन बार कैसे उत्तीर्ण किया ? यही नहीं, जाफरी के आवेदनों पर यदि रेलवे के चिकित्सा बोर्ड कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं रख सका तो एम्स जैसे संस्थान या किसी भी अन्य केंद्रीय अस्पताल से कर्मचारी के कलर विजन की जांच क्यों नहीं कराई गई? क्या रेलवे के डाक्टर कोई गंभीर चूक छिपाने की कोशिश कर रहे थे, जिस पर सीनियर डीओएम कोआर्डिनेशन के पत्र ने उस गंभीर चूक पर परदा डाल दिया।
“नेशनल व्हील्स” इस मामले की पड़ताल में कई और खुलासे करेगा, क्योंकि रईस अहमद जाफरी को चिकित्सकीय रूप से अनफिट करने और सेवा से बाहर करने के मामले में कई खामियां हैं।
क्रमश: