काशी विश्वनाथ मंदिर में हिन्दू राजा की पत्नी के साथ हुए दुर्व्यवहार और आपत्तिजनक आचरण क्या सिर्फ कोरी कल्पना है? जिसके जरिए काशी विश्वनाथ मंदिर और वहां के पुजारियों पर चरित्रहीनता का कलंक लगा अथवा यह कोरी काल्पनिक तथ्यहीन कहानीभर है। इसका खुलासा इंडिक अकादमी के सदस्य एवं वरिष्ठ स्तंभकार विकास को सारस्वत ने किया है। उनका दावा है कि कांग्रेसी नेता पट्टाभि सीतारमैया ने लखनऊ के एक मुल्लाजी की कोरी गप्पबाजी को अपनी पुस्तक “फैदर्स एंड स्टोंन्स” में लिखकर ऐसा स्थाई कर दिया जिसे तथाकथित सेक्युलरवादी ज्ञानवापी का विवाद उठते ही शोर मचाने लगते हैं।
विकास सारस्वत ने 20 मई 2022 को एक दैनिक जागरण के संपादकीय में लिखा है कि सीतारमैया अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि यह कहानी लखनऊ के एक मुल्लाजी ने उनके मित्र को सुनाई थी। सीतारमैया के अनुसार मुल्लाजी ने दावा किया था कि यह कहानी कथित तौर पर एक दस्तावेज के रूप में दर्ज है। और उसे वह समय आने पर उनके मित्र को दिखाएंगे। मुल्लाजी इस तथाकथित दस्तावेज को दिखा पाते उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई।
विकास लिखते हैं कि एक बेनाम मित्र और एक गुमनाम मुल्लाजी के हवाले से की गई इस गप्पाबाजी को इतिहास बनाने की कवायद न सिर्फ विषय और विधा का उपहास है, बल्कि सदियों से इस्लामी उग्रवाद का शिकार हुए हिंदू मानस के साथ क्रूरता भी है। सेकुलरिज्म के नाम पर लगातार और इतने बड़े-बड़े झूठ कहे गए हैं कि सेक्युलरिज्म का दूसरा नाम भी झूठ और मक्कारी लगने लगा है।
ये है कहानी
औरंगजेब द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस को उचित ठहराने के लिए अक्सर एक कहानी सुनाई जाती है। इस कहानी के अनुसार बंगाल की ओर युद्ध अभियान पर जा रहे औरंगजेब के काफिले में कुछ हिंदू राजा सपत्निक शामिल थे। बनारस से गुजरते समय तक रानियों ने काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा अर्चना करने की इच्छा जताई। बाद में पूजा करने गई रानियों में से एक रानी वापस नहीं लौटी। उस रानी को ढूंढने गई टुकड़ी ने मंदिर के गर्भ गृह में कथित बदसलूकी का शिकार हुई रानी को रोते हुए पाया। खबर मिलने पर औरंगजेब क्रोध में आ गया और उसने काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ने का आदेश दे दिया।
क्या कहते हैं विकास ?
विकास सारस्वत कहते हैं कि इतिहास से थोड़ा भी परिचित व्यक्ति बता सकता है कि यह कहानी कोरी गप्प है, क्योंकि बंगाल या बनारस जाना तो दूर औरंगजेब पूर्व दिशा में फतेहपुर जिले में पढ़ने वाले खजुआ से आगे कभी नहीं गया। साथ ही न तो हिंदू राजा इस प्रकार के अभियानों में रानियों को साथ लेकर जाते थे और न ही उनके सुरक्षाकर्मियों के रहते किसी महंत या पुजारी द्वारा रानी का अपहरण संभव था।
वह लिखते हैं कि इस झूठ को कोईनराड एल्स्ट ने अपनी पुस्तक “अयोध्या” में बेनकाब किया है। एल्स्ट लिखते हैं कि इस काल्पनिक कहानी को मार्क्सवादी इतिहासकार गार्गी चक्रवर्ती ने इतिहास का रूप दिया। गार्गी ने गांधीवादी नेता वीएन पांडे को उद्धृत किया। दसरी ओर वीएन पांडे ने अपनी कहानी का स्रोत कांग्रेसी नेता पट्टाभि सीतारमैया को बताया है।